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Monday, August 30, 2010

रक्षाबंधन

क्या करू क्या न करू ये कैसी मुश्किल आई
जिसको मैं प्यार करता वो बोल गई भाई
रक्षाबंधन वाले दिन वो घर पे मेरे आई
और बोली राखी बंधवालो मेरे प्यारे भाई

Sunday, August 8, 2010

भिखारी

सुबह - सुबह एक भिखारी मेरे घर आया

और दरवाजे पर आकर जोर से चिल्लाया

मैंने दरवाजा खोला और पूछा क्या है

वो बोला भैया दो दिन से भूखा हु

मैंने कहा दो दिन से भूखा है तो मैं क्या करू

वो बोला भैया कुछ खाने को दे

मैंने कहा भाई पहले खाना बनाने तो दे

तू तो सुबह - सुबह ही आ गया

कल रात का बचा - कूचा तो मेरा कुत्ता खा गया

हट्टा - कट्टा है तू क्या कुछ कमा नहीं सकता

कमा कर क्या कुछ खा नहीं सकता

वो बोला कमा कर खाऊंगा तो

मेहनत कर परेशान हो जाऊँगा

मांग कर खाना ही मुझे अच्छा लगता है

अपना बिज़नस तो मांग कर ही चलता है

तू भी मेरे साथ चल तुझको भी ऐश करवा दूंगा

मेरी तरह तुझको भी हट्टा- कट्टा बना दूंगा

सुबह - सुबह जल्दी ही तुझे खाना मिल जाएगा

खाना बनाने की झंझट से तू बच जाएगा

खाना खाने के बाद भी तेरे पास

इतना खाना बच जाएगा

की तेरे द्वार पर आने वालो को

तू खाली हाथ नहीं लौटाएगा

और कुत्तो को रात का बचा हुआ नहीं

गरमा - गर्म भोजन खिलायेगा

उसकी बात सुनकर मैं दंग रह गया

की एक भिखारी मुझसे क्या क्या कह गया

हमारे देश में किसी चीज की कमी नहीं है

हमारे देश का भिखारी भी किसी

VIP से कम नहीं है





Thursday, February 25, 2010

होली

होली के दिन हमने सोचा

हम होली खेलेंगे

चाहे कोई भी आ जाए

सबको हम झेलेंगे

ये सोचकर हम बाज़ार से

रंग और गुलाल खरीद लाये

मति मारी गयी थी हमारी

जो पिचकारी भूल आये

फिर सोचा इस बार

बिना पिचकारी के ही

होली खेली जाए

रंगों और गुलालो से ही

काम चलाया जाए

दिल में अरमान लेकर

हम घर से बाहर निकले ही थे

की मोहल्ले के लडको ने

हमको घेर लिया

और सालो ने पटक पटक कर

इस कदर रंग लगाया

की पूरा बदन रंग बिरंगा कर दिया

तभी सामने हमको दिखी

कुछ हसीनाए

सभी लड़के मचलने लगे

सभी के दिल फिसलने लगे

हम पहुचे उनके पास

लेकिन वह बैठे थे उनके भाई साहब

बॉडी उनकी सलमान जैसी

हमने सोचा हो गयी हमारी

ऐसी की तैसी

लेकिन तभी वो जनाब

वह से उठकर चल दिए

और हमारी जान में आ गयी जान

हमने सोचा लगता है आज हमारी

किस्मत है हम पे मेहरबान

तभी तो ये हसीनाए

हमको दिखी है

कोई हरे कोई पीले

रंगों में रंगी है

तभी एक क़यामत आई

उसने हम पर पिचकारी चलाई

वो हमको देखकर मुस्कुराई

और मुस्कुरा कर कहा

हैप्पी होली मेरे भाई

अब सोचता हु

क्यों होली खेलने की बात

मेरे दिमाग में आई

क्यों होली खेलने की बात

मेरे दिमाग में आई



आप सभी को होली की बहुत - बहुत शुभकामनाये

Friday, February 12, 2010

वाईफ एंड कार

मैंने खरीदी एक कार
लेकिन वो निकली बेकार
कमबख्त पेट्रोल बहुत खाती थी
मैं उसको नहीं
वो मुझको चलाती थी
आये दिन उसकी सर्विस करवानी पड़ती
इस चक्कर में रोज बीवी लडती
मुझसे ज्यादा तो तुम
उस कार का ख़याल रखते हो
तुम मुझ पर नहीं
उस कार पर मरते हो
मैंने कहा कार भी कोई मरने की चीज है
मैं तो तुम पर मरता हू
खर्च जरूर कार पर
तुमसे ज्यादा करता हू
वो तुम्हारी तरह 
कान तो नहीं खाती है 
बेचारी मुझसे धक्का ही तो लगवाती है
सच में तुम दोनों ने मुझे
परेशान करके रखा है
वो तो चलते चलते रुक जाती है
और तुम बोलना शुरू करो तो
रुकने का नाम ही नहीं लेती हो
ऊपर से मायके जाने की
धमकी और देती हो
तुम दोनों ने मेरी
जेब खाली करवा दी है
मोहल्ले में मेरी नाक कटवा दी है
की कुलदीप की
कार और बीवी बड़ी सीधी है 
बीवी दिन भर कान खाती रहती है
तो कार पेट्रोल ज्यादा पीती है
मैं तो तुम दोनों को
झेलते झेलते थक गया हू
सच में मैं तुम दोनों से पक गया हू
जाओ तुम मायके
मैं खुद तुम्हे छोड़कर आता हू
तुम्हारे जाते ही घर में
दूसरी बीवी लाता हू 
कमबख्त उस कार को भी
ठिकाने लगाता हू 
और अपने पुराने
स्कूटर से ही काम चलाता हू

Saturday, January 16, 2010

पप्पू पार्ट - 2



दोस्तों हम सबने पप्पू को बहुत समझाया की पप्पू पढाई कर ले, पढाई कर ले फ़ालतू की आवारागर्दी करना छोड़ दे और आखिर हमारी मेहनत रंग लायी और पप्पू ने पढाई शुरू कर दी और वो अपनी पढाई में लग गया है और देखते है उसने क्या क्या किया है तो शुरू करते है

पप्पू पार्ट - 2




फरवरी में ऐसा भूत चढ़ा


की पप्पू जंग में कूद पड़ा


दिन रात वो लड़ता रहता


लेकिन कभी न वो थका


शत्रु बहुत था ताकतवर


लेकिन उसको लगा न डर


बेख़ौफ़ हो वो आगे बढ़ा


की पप्पू जंग में कूद पड़ा,


खाना पीना छोड़ के सब


लड़ता रहता वो तो बस


आधी जंग वो जीत चुका था


दुश्मन को वो पीट चुका था


आगे बढता वो चला


की पप्पू जंग में कूद पड़ा


आ गया मार्च का महिना


पप्पू हो गया पसीना पसीना


अब आर पार की लड़ाई थी


पप्पू ने भी रणनीति बनाई थी


असली दुश्मन से पप्पू का अब था सामना


पप्पू ने की भगवान से प्रार्थना


पूरे जोश के साथ वो दुश्मन से लड़ा


की पप्पू जंग में कूद पड़ा


लड़ता गया लड़ता गया


दुश्मन को मार आगे बढता गया


सब दुश्मनों को उसने कर दिया साफ़


अब लड़ाई हो चुकी थी समाप्त


अब पप्पू को चैन आया


अप्रैल और मई उसने छुट्टी में बिताया


जून में आया पप्पू के युद्ध का परिणाम


हमने पूछा पप्पू का हाल


पप्पू ने कहा ख़ुशी की है बात


आपका पप्पू हो गया पास !!

Sunday, January 10, 2010

गीत गाता है


तुमको देखते ही मुझे तुम पर प्यार आता है
ना जाने क्यों मुझे बार बार यही खयाल आता है !

ऐसा लगता है जैसे तू मेरी है सिर्फ मेरी
खुदा के द्वार से भी यही पैगाम  आता है !

तू मुझे प्यार करे या ना करे
लेकिन मुझे तो तुझ पर प्यार आता है !

तू मुझसे मिलने आये या ना आये
पर तुझसे मिलकर ही मुझे करार आता है !

पहले तो तू मुझसे मिलने आ जाया करती  थी
लेकिन अब सिर्फ तेरा सलाम आता है !

जो गीत बरसो पहले तेरे होंठो पर आया था
आज कुलदीप सिर्फ वो ही गीत गाता है !

Wednesday, January 6, 2010

सुबह


सुबह आती है
रोशनी के साथ
अँधेरे को चीरते हुए
जो पहचान है
बुराई के अंत  की
अच्छाई की बुराई पर विजय  की

सुबह आती है
पक्षियों के चहकने के साथ
जो पहचान है आजादी की
खुले आकाश में उड़ने की
लक्ष्य को पाने की
कुछ कर दिखाने की


सुबह आती है
फूलो के खिलने के साथ
जिनकी भीनी - भीनी खुशबू से
समां महक उठता है
जो सदा मुस्कुराने की
प्रेरणा  देते है

सुबह आती है
ईश्वर  के नाम के साथ
जो सत्य है , प्रेम है
जो सिखाता है
सभी से प्रेम करना
दुखियों की सेवा करना

सुबह आती है
हमें बताने के लिए
उठो जागो और कर्म करो
ताकि एक नयी सुबह
फिर से आ सके
तुम्हे जगाने के लिए

बेवफा


मुकद्दर ऐसा है
चाहू  जिसे वो मिलता नहीं
गर्दिश में है
मेरी किस्मत का सितारा
कोई फूल मेरी बगिया में
खिलता नहीं
टूट जाते है ख्वाब सारे
ख्वाब हकीकत होते नहीं
नसीब मिला है मुझको ऐसा
किसी से दिल मिलता नहीं
ईन्तजार करता है दिल हमेशा
ईन्तजार ख़त्म होता नहीं
कुछ बात तो है
जो हुआ वो बेवफा
यू ही तो कोई
बेवफा होता नहीं

Monday, January 4, 2010

घूंघट


गाँव के पनघट पर
गोरिया पानी भरने आती थी
घूंघट में अपने
चेहरे को छुपाती थी
कही कोई देख न ले
इस लाज - शर्म के मारे
बार - बार घूंघट को
नीचे सरकाती थी
एक दूजे की
सुख - दुःख  की कहानी
आपस में बतियाती थी
पानी भरकर
फिर घूंघट में
घर की ओर आती थी
सुन्दर सा चेहरा घूंघट में
जो न किसी को दिखाती थी
घूंघट को ही गहना समझकर
वो गोरिया शरमाती थी