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Thursday, February 25, 2010

होली

होली के दिन हमने सोचा

हम होली खेलेंगे

चाहे कोई भी आ जाए

सबको हम झेलेंगे

ये सोचकर हम बाज़ार से

रंग और गुलाल खरीद लाये

मति मारी गयी थी हमारी

जो पिचकारी भूल आये

फिर सोचा इस बार

बिना पिचकारी के ही

होली खेली जाए

रंगों और गुलालो से ही

काम चलाया जाए

दिल में अरमान लेकर

हम घर से बाहर निकले ही थे

की मोहल्ले के लडको ने

हमको घेर लिया

और सालो ने पटक पटक कर

इस कदर रंग लगाया

की पूरा बदन रंग बिरंगा कर दिया

तभी सामने हमको दिखी

कुछ हसीनाए

सभी लड़के मचलने लगे

सभी के दिल फिसलने लगे

हम पहुचे उनके पास

लेकिन वह बैठे थे उनके भाई साहब

बॉडी उनकी सलमान जैसी

हमने सोचा हो गयी हमारी

ऐसी की तैसी

लेकिन तभी वो जनाब

वह से उठकर चल दिए

और हमारी जान में आ गयी जान

हमने सोचा लगता है आज हमारी

किस्मत है हम पे मेहरबान

तभी तो ये हसीनाए

हमको दिखी है

कोई हरे कोई पीले

रंगों में रंगी है

तभी एक क़यामत आई

उसने हम पर पिचकारी चलाई

वो हमको देखकर मुस्कुराई

और मुस्कुरा कर कहा

हैप्पी होली मेरे भाई

अब सोचता हु

क्यों होली खेलने की बात

मेरे दिमाग में आई

क्यों होली खेलने की बात

मेरे दिमाग में आई



आप सभी को होली की बहुत - बहुत शुभकामनाये

2 comments:

kshama said...

Ha,ha,ha!

Shabad shabad said...

Holi ke din ka bakhoobee varnan kia hai.
Holi ke din kee yaad taza karvane ke leeya shukria.

Hardeep