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Tuesday, December 22, 2009

महंगाई


एक दिन बाज़ार में
मिल गए मुझको वर्मा जी
बोले क्या हाल है
ठीक है या पहले की तरह
हाल बेहाल है
इस महंगाई में
दिन कैसे गुजर रहे है
घर के सारे झगडे
आसानी से तो सुलझ रहे है
मैंने कहा अरे रुको वर्मा जी
आपने तो सवालो की झड़ी लगा दी
सारी जिन्दगी की हकीकत
एक बार में ही बता दी
मेरी छोड़ो मेरा क्या
मेरी तो कैसे न कैसे
कट रही है
पर आप बताइए
आप पर कैसी गुजर रही है
अजी गुजर क्या रही है
हम पर तो बरस रही है
बीवी की गालियो की आवाज़
अभी अभी कानो में पड़ी है
और लगता है जैसे
वो हाथो में डंडा लेके
मेरे सामने खड़ी है
महीने की तनख्वाह
हफ्तों में ख़त्म हो जाती है
और बीवी बात बात में
ना जाने क्यों चिल्लाती है
अब तो हालात ऐसे है की
कहने पर भी मायके नहीं जाती है
और अपनी माँ को बुलाने की धमकी सुनाती है
सोच रहा हु मैं तो
एक सन्यासी बन जाऊ
सन्यासी बन कर तो सुख से
शायद जी पाऊ
इस महंगाई ने तो मेरी
कमर ही तोड़ दी है
मैंने तो खुश रहने की
जिंदगी में
आस ही छोड़ दी है

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